अजय की पत्नी ने जुबैदा बानों को तो जुबैदा की बेटी ने अजय को दी किडनी..
इसके बाद हुआ दोनों का ट्रांसप्लांट, अब दोनों की हालत ठीक..
यमुनानगर :- जब जान पर आती है तो सब बेड़ियां टूट जाती है। ऐसा ही कुछ जम्मू कश्मीर के अनंतनाग की जुबैदा बानों और हरियाणा के यमुनानगर के अजय के साथ हुआ। न कोई जान, न कोई पहचान लेकिन फिर भी दोनों के बीच खून का रिश्ता बन गया। रिश्ता तब बना जब दोनों की किडनी खराब हो गई और ट्रांसप्लांट की नौबत आ गई।
पति की किडनी खराब हुई तो पत्नी की किडनी नहीं की मैच
34 साल के अजय की किडनी खराब हो गई। डॉक्टर ने किडनी ट्रांसप्लांट बताया। पत्नी गीता किडनी देने के लिए तैयार थी, लेकिन ब्लड ग्रुप मैच नहीं कर पाया। इसी तरह जम्मू कश्मीर के अनंतनाग के गांव कुलग्राम से 47 साल की जुबैदा बानो की भी किडनी खराब हो गई और उन्हें भी ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई।
उनके परिवार से बेटी इफरा जान किडनी देने को तैयार हुई तो उसका भी ब्लड ग्रुप मैच नहीं हुआ। अजय और बानो को लगा कि अब बचना मुश्किल है, लेकिन यहीं से दोनों के बीच मजहब की बेड़ियां टूटनी शुरू हुई। जब दोनों परिवारों को पता चला कि बानो की बेटी अजय को और अजय की पत्नी बानो को किडनी दे सकती है। तब दोनों ने एक-दूसरे को किडनी डोनेट करने का फैसला लिया और 10 जनवरी को ऑपरेशन हुआ।
अब अजय अगर जिंदा है तो मुस्लिम इफरा जान की वजह से और इफरा जान की मां बानो जिंदा हैं तो हिंदू गीता की वजह से। अजय और इफरा जान के बीच अब बहन-भाई का रिश्ता बन गया है। फिलहाल दोनों परिवार चंडीगढ़ में रह रहे हैं और वहां पर ट्रीटमेंट चल रहा है। हर दिन जब तक दोनों परिवार आपस में बात न कर लें तो उन्हें नहीं लगता कि उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है ।
बानो के पति की किडनी छोटी थी, परिवार में किसी का ब्लड मैच नहीं हुआ था
चंडीगढ़ स्थित अलकेमिस्ट अस्पताल के किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन व यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीरज गोयल ने बताया कि जुबैदा बानो (47) दो साल से किडनी की बीमारी से पीड़ित थीं। उनके पति अपनी किडनी दान करने के लिए तैयार थे, लेकिन मेडिकल जांच में उन्हें किडनी दान के लिए अयोग्य पाया। उनकी एक किडनी पहले से छोटी थी। वहीं उनकी बेटी इफरा को भी ब्लड मिसमैच के कारण अयोग्य पाया गया। मैचिंग ब्लड ग्रुप वाला परिवार में कोई अन्य नहीं था। वहीं सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजी डॉ. रमेश कुमार ने बताया कि जम्मू कश्मीर और हरियाणा के संबंधित स्टेट अथॉरिटीज से आवश्यक कानूनी अनुमति के बाद ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक अलकेमिस्ट में किया गया।
कश्मीर से धारा-370 हटी तो जान ही अटक गई थी
अजय की पत्नी गीता ने बताया कि उनकी जम्मू कश्मीर के परिवार से चंडीगढ़ अस्पताल में ही मुलाकात हुई थी। वहां सहमति के बीच किडनी ट्रांसप्लांट की कागजी प्रकिया पूरी करने के लिए दोनों अपने-अपने घर आ गए। उन्हीं दिनों जम्मू-कश्मीर से सरकार ने धारा-370 हटा दी। इससे वहां मोबाइल सेवाओं से लेकर आने-जाने की सेवाएं बंद हो गईं। दो माह तक उनका जम्मू कश्मीर की फैमिली से संपर्क नहीं हुआ। इस बीच उन्हें लगा कि अब पति को किडनी नहीं मिल पाएगी, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि कश्मीर में हालत सामान्य होने पर बानो का परिवार जरूर आएगा और ऐसा ही हुआ। उनका कहना है कि इफरा जान की वजह से उनका पति जिंदा है। उनके पति अब स्वस्थ्य हैं।